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आखिरी खत

सब कुछ जो कहना है मुझको मैं तुमको कहना चाहता हूं

सब छोड़ बैर भाव तुमसे एक आखिरी खत लिखना चाहता हूं

मैं शुरू करूं क्या बात कहूं कुछ भी ना समझ में आए है

तुमसे रहकर दूर मुझे हालात समझ में आए है

जज्बातों को अल्फ़ाजो में कैसे मैं बयां करूं बता

जिस इश्क़ की कसमें खाते थे उस इश्क़ का ही नहीं पता

मैंने रोका था टोका था फिर झोंका था इश्क़ में खुद को तेरे

तू बेमतलब कोई बात बिना ठुकरा के गई इश्क़ को मेरे

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मैं आज वो ही जज्बात तुम्हें याद दिलाना चाहता हूं

सब छोड़ बैर भाव तुमसे एक आखिरी खत लिखना चाहता हूं

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