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आजकल इश्क़ मुझे तमाशा सा लगता है

जिनसे मिलने की तमन्ना रही उम्र भर

ज़िक्र उनका अब कहीं नहीं होता है

वो बाशिंदे इस शहर के अब नहीं होंगे शायद

क्यूंकि इस शहर का मिज़ाज अब फीका है

रौनक उस मोड़ पर बढ़ती है दिन ढले आज भी

इंतजार जाने किस किसको किस किसका है

कितने मायूस चेहरे दिखते है मुझे हर तरफ

हर कोई अपने किरदार में क्या फबता है

आजकल इश्क़ मुझे तमाशा सा लगता है

पहले थोड़ा कम अब ज्यादा सा लगता है

इस शहर में मुझे सब अजनबी सा लगता है

आजकल इश्क़ मुझे तमाशा सा लगता है

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